Friday 2 January 2015

एक धुँधली जगह

tr from Arunachali poet Mamang Dai's English poem, 'An obscure place'. From Dancing Earth: An Anthology of Poetry from North-East India, pg. 88-89, 2009. 

हमारे वंश का इतिहास कहानियों से शुरू होता है ।
हमें नहीं पता कि जो भाषा हम बोलते हैं 
वो किसी लिखित अतीत से जुडी हैँ ।
कुछ भी निश्चित नहीं है।
वहाँ पहाड़ हैं । आह, वहाँ पहाड़ हैं । 
हमने हर एक चोटी चढ़ी। हम नदी किनारे सोयें । 
पर जीत के बारे में अबतक ना बोलें ।  

एक धुँधली जगह शिकारी को बार बार तंग करती है ।
इनाम दूर फिसल जाता है। 
कल महिलाओं ने अपना चेहरा छुपा लिया ।
बच्चों को बोलने से मना कर दिया । 
कल हमने कुछ आदमियों को पनाह दी थी,
जो जन्मभूमि के ख़ातिर हमारी पहाड़ियों को लांघ गए, उन्होंने कहा -- 
जो जानते हैं कि जानना क्या होता है, 
और सोते हुए घर, आदमी, और गाँव पत्थर बन गए । 

गर कोई मृत्य ना हो, तो खबरें शांत होती हैं 
गर केवल शांति हो, तो हमें अशांत होना चाहिए । 
सुनो, प्रार्थनाओं कि आवाज़ दबी-दबी होती है:

गर कोई अजनबी यहाँ से गुजरे 
तो उसे आकाश देखने देना ।
धूएं का बादल चींटियों का पीछा करता है ।
देखा!  उन्होंने जंगली बिल्ली को काट दिया 
और हार्नबिल को ग़हरी नींद में दफ़ना दिया । 
अजनबियों के लफ़्ज़ हमें उस धुँध में ले गए, 
जो उससे ग़हरी है जिसे हम पीछे छोड़ गए थे 
रोते हुए, लहलहाती घास के मैदानों के माफ़िक 
जहाँ हमारे पूर्वजों कि हड्डियां दबी हैं 
सुन्दर विचारों से घिरी ।

No comments: