Friday 2 January 2015

रंग, शब्द, धुन

tr from Anmole Prasad's English tr of Rajendra Bhandari's Nepali poem, 'Colour, Word, Tone.' From, The Oxford Anthology of Writings From North-East India, 2011, pg. 24-25

रात के आलिंगन में घुटती 
शहरी रोशनियों के माफ़िक, 
हम सब के भीतर बुझ रही है 
विश्वास कि ज्योति। 

किसी चीख के समान खुरदरी हमारी आवाज़, 
किसी मातम के समान दुःखद। 
किसी फूल के प्राकृतिक रंगों के समान
संजो लिया है दम्भपूर्ण पैतृक देवताओं को 
हमने अपने दिल-मंदिर में।

हम, सोल्ज़ेनित्स्यन 
अपने दिल के साइबेरियन कैम्पों में। 
हम, ट्रोट्स्की
सिर्फ रात की रोशनी में
एक दूसरे के चहरे देखतें हैं। 
नहीं ढूँढ पाते हम पौ फटने तक भी
हमारी गुल्लक, अलमारियां, बक्से, 
वंशजों के अवशेष 
राख में। 

हमारे शब्दों और धुनों की नक़ल करते, 
गीदड़ और भेड़िये हमें सुनाते हैं लोरियाँ। 
भुलक्कड़पन के अफ़ीमी संगीत में, 
किसी फ़र्ज़ी सपने में लेते हैं हम झपकियाँ। 

जिस दिल कि मौलिक संवेदनाएं ही 
भस्म कर दी गई हो --
उसे कंहाँ घर?  कहाँ बीहड़?

एक धुँधली जगह

tr from Arunachali poet Mamang Dai's English poem, 'An obscure place'. From Dancing Earth: An Anthology of Poetry from North-East India, pg. 88-89, 2009. 

हमारे वंश का इतिहास कहानियों से शुरू होता है ।
हमें नहीं पता कि जो भाषा हम बोलते हैं 
वो किसी लिखित अतीत से जुडी हैँ ।
कुछ भी निश्चित नहीं है।
वहाँ पहाड़ हैं । आह, वहाँ पहाड़ हैं । 
हमने हर एक चोटी चढ़ी। हम नदी किनारे सोयें । 
पर जीत के बारे में अबतक ना बोलें ।  

एक धुँधली जगह शिकारी को बार बार तंग करती है ।
इनाम दूर फिसल जाता है। 
कल महिलाओं ने अपना चेहरा छुपा लिया ।
बच्चों को बोलने से मना कर दिया । 
कल हमने कुछ आदमियों को पनाह दी थी,
जो जन्मभूमि के ख़ातिर हमारी पहाड़ियों को लांघ गए, उन्होंने कहा -- 
जो जानते हैं कि जानना क्या होता है, 
और सोते हुए घर, आदमी, और गाँव पत्थर बन गए । 

गर कोई मृत्य ना हो, तो खबरें शांत होती हैं 
गर केवल शांति हो, तो हमें अशांत होना चाहिए । 
सुनो, प्रार्थनाओं कि आवाज़ दबी-दबी होती है:

गर कोई अजनबी यहाँ से गुजरे 
तो उसे आकाश देखने देना ।
धूएं का बादल चींटियों का पीछा करता है ।
देखा!  उन्होंने जंगली बिल्ली को काट दिया 
और हार्नबिल को ग़हरी नींद में दफ़ना दिया । 
अजनबियों के लफ़्ज़ हमें उस धुँध में ले गए, 
जो उससे ग़हरी है जिसे हम पीछे छोड़ गए थे 
रोते हुए, लहलहाती घास के मैदानों के माफ़िक 
जहाँ हमारे पूर्वजों कि हड्डियां दबी हैं 
सुन्दर विचारों से घिरी ।