Sunday 13 April 2014

फ़तह

tr. from Desmond Kharmawphlang's English tr of his Khasi Poem, 'The Conquest'. From The Oxford Anthology of Writings From North-East India, pg. 61-62, 2011. 

अपने शहर की बात करते 
मैं कभी नहीं थकता। 
गर्मियों में गर्भित आकाश 
भावी बरसात से भरा,
सर्दियां पहुंची, अनमने सूरज के साथ 
छूती अकड़ी हई पहाड़ियां, झील पे 
ख्वाबों की कश्तियाँ । 

बहुत पहले, आदमी सुरमा के पार गए 
कारोबार करने, औरतों को घर लाने 
अपने वंश को बढ़ाने । 

फिर अंग्रेज आये 
सौगात लिए गोलियों, सुपारियों 
और धर्म की। 
लगातार जीत की तमंचे की नौंक पर 
शुरूआत हुई।  

अचानक, अँगरेज़ चले गए। 
तब सुकून था, फिर से थी सौंधी 
खुशबू भीगी पत्तियों की । 

पर समय की बदलती चाल से  
वो आये जो थे तपते मैदान से, 
हर जगह से। 

ऐ जख्मी जमीं, कैसे चाहते हैं वो 
तेरी भरपूर मिटटी, तेरी घायल औलादें। 
उनमें से एक ने मुझे बताया, 'जानते हो, 
तुम्हारा शहर वाक़ई महानगर है।' 

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