Saturday 7 March 2009

सच

सच,
शायद यही सच है,
जो दीखता है
आवाजें भी वही सच हैं,
जो सुनायी देती हैं
और इन सब के मध्य,
जो चुप हैं,
वो भी सच है
सच,
शायद ऐसा सच,
जो मौन है;
या फिर,
प्रतीक्षा में है;
सत्य के सूर्योदय की ,
आतुर है,
आस्तित्व अपना बताने को;
किंतु;
क्यूंकि यह भी सच है,
की, जीत ही महत्वपूर्ण है,
अन्धाधुन्ध दौड़ की पहचान;
ये दुनिया,
हाथो की गर्मी,
और;
आंखो की नरमी,
के लिए तरसती हर आत्मा,
प्रणय में भी विनय,
यही है;
विवशता सच की;
जब समक्ष हो, तो सक्षम नही,
जब सक्षम हो, तो समक्ष नही;
सत्य की दोधारी तलवार,
विराम तो देती है,
विश्राम नही
हृदयग्राही बनने को लालायित,
मानवता का प्रलोभन हो,
या अछुता मान,
व्यर्थ विवादो में,
सच तलाशती ये आँखें हो,
या, आतंक में शान्ति ढूँढता,
कोई इंसान;
सब;
कंही न कंही भूखे हैं;
निस्वार्थ भावना के,
किंतु;
रक्त के प्रवाह में,
जब मचा हो हाहाकार,
मन्दिर की घंटियो की गूँज,
तब सुनाई नही देती,
आत्मा में परमात्मा की उपस्थिति
तब दिखाई नही देती;
इंसान को तलाशता इंसान ही है सच;
शायद यही सच है,
की, आप और मैं,
सच की समीक्षा न कर,
अब सच की प्रतीक्षा करें

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