Saturday 14 March 2009

दिल की बातें

दिल की बातें, दिल ही जाने
सोचे समझे, जाने अनजाने
रिश्तो की सीमा में बंधकर;
कोई कैसे रब को पहचाने,
अक्सर खामोशी के बयां में;
ये लब हँसते, ये लब रोते,
पाना ही जो होती चाहत,
पाकर ही शायद सब खोते,
फिर भी दिल में हसरत होती;
अपने भी होते अफ़साने,
दिल की बातें दिल ही जाने
होठो पे ठहरी सी बातें;
ख़्वाबो में सहमी सी रातें;
लश्कर में भी तन्हा होकर,
अपनो में सपनो को बांधे;
प्रीत मेरी जो गीत बने तो,
झूम उठेंगे सब परवाने;
दिल की बातें दिल ही जाने

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